रहीम दास जी के दोहे अर्थ सहित
RAHIM KE DOHE WITH MEANING IN HINDI
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रहीम दास जी के दोहे (Rahim Ke Dohe) ज्ञान का अथाह समंदर हैं। यह समाज को एक नई दिशा देने का कार्य करते हैं। रहीम के दोहे (Rahim Ji ke Dohe) जीवन के विभिन्न पहलुओं को स्पर्श करते हैं। इस पोस्ट में आप पढ़ेंगे रहीम दास के प्रसिद्द दोहे और उनका हिंदी अर्थ।
रहीम दास जी के दोहे (RAHIM DAS JI KE DOHE)
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाये।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि प्रेम के रिश्तों की डोर एक कमजोर धागे से बंधी होती है इसको तोडना नहीं चाहिए। यदि एक बार प्रेम के रिश्तों का यह धागा टूट जाए तो फिर दोबारा नहीं जुड़ सकता। और यदि दोबारा जुड़ भी गया तो धागे में हमेशा के लिए गाँठ पड़ जाती है अर्थात वह रिश्ता पहले की तरह नहीं हो सकता।
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भये, हमको पूछे कौन।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं, वर्षा ऋतू आने पर कोयल ने यह सोचकर मौन साध लिया है की अब वर्षा ऋतू में तो मेंढक ही वक्ता होंगे और लोग उन्हीं को सुनेंगे। ऐसे में हमको कोई नहीं सुनेगा।
रूठे सूजन मनाइये, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि, पोइए टूटे मुक्ता हार।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि यदि आपका कोई प्रिय व्यक्ति आपसे सौ बार भी रूठ जाये तो उसे मना लेना चाहिए। जैसे यदि कोई मोतियों की माला टूट जाये तो हम उसे बार-बार धागे में पिरो लेते हैं।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि बड़ी चीजों को देखकर छोटी चीजों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि जहाँ सुई का काम होगा वहां सुई ही काम आएगी, वहां तलवार का कोई काम नहीं है।
रहीम दास के दोहे Rahim Das ke Dohe
रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरे, मोती मानुष चून।।
अर्थ: इस दोहे में रहीमदास जी ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पहला अर्थ इंसान की विनम्रता से सम्बंधित है जिसका अर्थ है कि हमें अपने स्वाभाव में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए। दूसरा अर्थ चमक या तेज से है जिसका अर्थ है मोती का अस्तित्व बिना चमक के कुछ भी नहीं है। तीसरा अर्थ आटे (चून) से सम्बंधित है जिसे बिना पानी के नम नहीं किया जा सकता।
रहिमन वहां न जाइये, जहाँ कपट को हेत।
हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनों खेत।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि वहां नहीं जाना चाहिए जहाँ छल कपट का बोलबाला हो तथा लोग छल कपट से अपना कार्य पूरा करते हों। क्योंकि हम तो मेहनत करके कुँए से पानी खींचते हैं और छल कपट करने वाले लोग बिना मेहनत के ही अपना खेत सींच लेते हैं।
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोले बोल।
रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका है मोल।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि जो लोग वास्तव में बड़े होते हैं वो बड़ी बड़ी बातें नहीं करते हैं तथा कभी भी अपनी बड़ाई अपने मुहं से नहीं करते हैं। हीरा अपने आप कभी नहीं कहता है कि मेरी कीमत लाख रूपये है।
रहीम के दोहे Rahim Ke Dohe in Hindi
रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि जो लोग कहीं मांगने के लिए जाते हैं, वे मरे हुए व्यक्ति के समान हैं। किन्तु वो लोग तो पहले से ही मरे हुए हैं जो मांगने पर भी कुछ नहीं देते हैं।
रहिमन चुप ह्वै बैठिये, देखिये दिनन को फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लागिहै देर।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि जीवन में जब बुरे दिन आते हैं तो चुप बैठना ही बेहतर है। जब अच्छे दिन आते हैं तो कार्यों के बनते देर नहीं लगती है।
रहिमन विपदा ही भली, जो थोड़े दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि थोड़े दिन की विपत्ति भी अच्छी होती है। जो हमें यह बता देती है कि इस संसार में कौन हमारा हित सोचता है और कौन अनहित।
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढे अंधेरो होय।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि दीपक और कुपुत्र दोनों एक जैसे ही होते हैं। दोनों ही शुरुआत में तो उजाला करते हैं लेकिन जैसे जैसे बढ़ते हैं वैसे-वैसे अँधेरा होता जाता है।
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहि न पान।
कही रहीम पर काज हित , संपति संचहिं सुजान।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि पेड़ कभी अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं तथा तालाब कभी भी अपना पानी स्वयं नहीं पीते हैं। उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति भी अपने धन का संचय लोगों के कल्याण के लिए ही करते हैं।
रहीम दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित
Rahim Ke Dohe with meaning in Hindi
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहे भुजंग।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति सज्जन होते हैं उनका बुरी संगत भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती। जिस प्रकार चन्दन के वृक्ष पर बहुत सारे सर्प लिपटे रहते हैं लेकिन वह चन्दन के वृक्ष का कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं।
जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटि जाहि।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि किसी बड़े व्यक्ति को छोटा कहने से वह छोटा नहीं हो जाता है, बड़ा तो हमेशा बड़ा ही रहता है। ठीक उसी प्रकार जैसे गिरिधर श्रीकृष्ण को मुरलीधर कहने से उनका मान कम नहीं होता है।
बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि कोई भी कार्य हमेशा सोच समझकर करना चाहिए। एक बार कोई कार्य बिगड़ जाता है तो उसे ठीक करना बहुत मुश्किल हो जाता है। जिस प्रकार दूध जब फट जाता है तो उसे कितना भी मथ लो उससे मक्खन नहीं बनाया जा सकता।
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