सूरदास के पद हिंदी अर्थ सहित SOORDAS KE PAD
Soordas ke Pad: सूरदास कृष्णभक्ति शाखा के प्रवर्तक कवि हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान् श्रीकृष्ण की लीला का मनमोहक वर्णन किया है।
सूरदास जी के रोम-रोम मे भगवान् श्रीकृष्ण बास्ते हैं। वे उनका सुमिरन, चिंतन एवं गायन करते हैं। प्रभु श्रीकृष्ण की मोहक लीलाओं का वर्णन जिस खूबसूरती के साथ प्रकार सूरदास जी ने किया है वैसा कहीं अन्यत्र देखने को नहीं मिलता।
इस लेख में हम उनके पदों “Soordas ke Pad” को अर्थ सहित समझने का प्रयास करेंगे।
Surdas ke Pad with Meaning in hindi
सूरदास के पद संख्या 1
चरन-कमल बंदौ हरि-राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौं सब कछु दरसाई।।
बहिरौ सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौ तिहि पाई।।
हिंदी अर्थ: मैं भगवान् श्रीहरि के चरण कमलों की वंदना करता हूँ जिनकी कृपा से पंगु भी पर्वत को पार कर लेता है। अंधे को दिखाई देने लग जाता है, बहरा भी सुनने लग जाता है और गूंगा भी बोलने लग जाता है। जिनकी कृपा होने पर कंगाल भी सिर पर छत्र धारण करके चलने वाले राजा की भांति हो जाता है। सूरदास जी कहते हैं मैं उस करुणामयी भगवान् श्रीहरि के चरणों की बार-बार वंदना करता हूँ।
सूरदास के पद संख्या 2
अबिगत गति कछु कहत न आवै।।
ज्यौं गूंगै मीठे फल की रास अंतर्गत हीं भावै।।
परम स्वाद सबही सु निरंतर अमित तोष उपजावैं।
मन-बानी कौं अगम-अगोचर सो जानै जो पावै।।
रूप-रेख-गुन-जाति-जुगति-बिनु निरालंब कित धावै।
सब बिधि अगम बिचारहिं तातैं सूर सगुन-पद गावै।
हिंदी अर्थ: सूरदास जी कहते हैं उसके स्वरुप का वर्णन करना सम्भव नहीं है जिसे जाना नहीं जा सकता है। जैसे गूंगा व्यक्ति मीठे फल के रस को अनुभव तो कर सकता है लेकिन उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता, वैसे ही उस परब्रह्म की भक्ति का आनंद भक्त को अंदर ही अंदर प्राप्त होता है और उसे परम संतोष की प्राप्ति होती है। किन्तु यह मन और वाणी से जानना संभव नहीं है। इसे इन्द्रियों से जाना नहीं जा सकता। उस निराकार ब्रह्म को हर प्रकार से पहुँच से बाहर जानकर सूरदास जी कहते हैं कि मैं सिर्फ उस ब्रह्म के सगुण रूप की भक्ति लीला का गान करता हूँ।
सूरदास के पद संख्या 3
जैसें तुम गज कौ पाऊँ छुड़ायौ।
अपने जन को दुखित जानि के पाउँ पियादे धायौ।।
जहँ-जहँ गाढ़ परी भक्तनि कौं, तहँ-तहँ आपु जनायौ।
भक्ति-हेत प्रह्लाद उबारयौ, द्रौपदि-चीर बढ़ायौ।।
प्रीती जानी हरि गए बिदुर कैं, नामदेव-घर छायौ।
सूरदास द्विज दीन सुदामा, तिहिं दारिद्र नसायौ।।
हिंदी अर्थ: सूरदास जी भगवान् श्रीहरि से प्रार्थना करते हैं कि जैसे आपने संकट में फंसे हुए गजराज की सहायता की और उसकी पुकार सुनकर उसकी रक्षा के लिए आप दौड़कर चले आये, वैसे ही जब आपके भक्तों पर संकट आया तो अपने उन पर भी अपनी कृपा की
सूरदास के पद संख्या 4
रे मन, गोबिंद के है रहियै।
इहिं संसार अपार बिरत है, जम की त्रास न सहियै।
दुःख, सुख, कीरति, भाग आपनैं आइ परै सो गहियै।
सूरदास भगवंत-भजन करि अंत बार कछु लहियै।।
हिंदी अर्थ: सूरदास जी कहते हैं कि हे मन हमेशा गोविन्द के ही बनकर रहना; इस नश्वर संसार से आसक्ति रहित हो जा, जिससे नर्क की यातना को न सहना पड़े। दुःख-सुख, कीर्ति आदि जो भी मिले उसे ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार करना चाहिए। सूरदास जी कहते हैं कि जीवन के आखिरी समय में ईश्वर का भजन करके इस संसार से मुक्ति का प्रयास करना चाहिए।
Soordas ke Pad with Hindi Meaning
सूरदास के पद संख्या 5
सबै दिन गए विषय के हेत।
तीनौं पन ऐसैं हीं खोए, केश भए सिर सेत।।
आँखिनी अंध,स्रवन नहिं सुनियत, थाके चरन समेत।
गंगाजल तजि पियत कूप-जल, हरि-तजि पूजत प्रेत।।
मन-बच-क्रम जौ भजै स्याम कौं, चारि पदारथ देत ।
ऐसौं प्रभु छाँड़ि क्यौं भटकै, अजहूँ चेति अचेत।।
राम राम बिनु क्यौं छूटौगे, चंद गहैं ज्यौं केत।
सूरदास नाम बिनु क्यौं छूटौगे, चंद गहैं ज्यौं केत।
सूरदास कछु खरच न लागत, राम नाम मुख लेत।।
हिंदी अर्थ: सूरदास जी अपने मन को सम्बोधन करते हुए कहते हैं कि हे मन! तेरी सारी उम्र विषयों को भोगते हुए ही बीत गयी। जीवन की तीनों अवस्थाएं ऐसे ही बिता दी। सर के बाल भी अब सफ़ेद हो गए हैं, आँखों से अँधा और कानों से भी बहरा हो गया है। हाथ पैर भी कमजोर हो गए हैं। सारी जिंदगी तू ईश्वर रुपी गंगाजल को छोड़कर विषय रुपी कुएं का जल ही पीता रहा। यदि तू मन, वचन और कर्म से भगवान् का भजन करे तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पदार्थ आसानी से ही प्राप्त हो जायेंगे। हे मुर्ख मन! तू ऐसे दयालु ईश्वर को छोड़कर बेकार में माया रुपी संसार में भटक रहा है। सूरदास जी कहते हैं कि राम-नाम को जपने में कुछ भी खर्च नहीं होता। फिर तू राम-नाम का स्मरण क्यों नहीं करता।?
सूरदास के पद संख्या 6
हमारे निर्धन के धन राम।
चोर न लेत घटत नहिं कबहुँ, आबत गाढैं काम।।
जल नहिं बूड़त अगिनि न दाहत, है ऐसो हरि-नाम।
बैकुंठनाथ सकल सुखदाता, सूरदास सुख-धाम।।
हिंदी अर्थ: सूरदास जी कहते हैं कि राम का नाम ही निर्धन लोगों का धन है। इस धन को न तो कोई चोर ही चुरा सकता है और न ही इसमें कभी कमी होती है। बुरे समय में यही काम आता है। ईश्वर का नाम न तो पानी में डूब सकता है और न ही इसे अग्नि जला सकती है।सूरदास जी कहते हैं कि वे सुख-धाम वैकुण्ठनाथ इंसान को सभी सुखों को प्रदान करने वाले हैं।
सूरदास के पद संख्या 7
जसोदा बार-बार यौं भाखै।
है कोउ ब्रज मैं हितू हमारौ, चलत गुपालै राखै।।
कहा काज मेरे छगन-मगन कौं, नृप मधुपुरी बुलायौ।
सुफलक-सुत मेरे प्रान हरन कौं, काल-रूप ह्वै आयौ।।
बरु यह गोधन हरौ कंस सब, मोहि बंदि लै मेलै।
इतनौई सुख कमल-नैन मेरी अँखियनि आगैं खेलै।।
बासर बदन बिलोकत जीवौ, निसि निज अंकम लाऊँ।
तिहिं बिछुरत जौ जियौं करम-बस, तौ हँसि काहि बुलाऊँ।।
कमल-नैन-गुन टेरत-टेरत, अधर बदन कुम्हिलानी।
सूर कहाँ लगि प्रगट जनाउँ, दुखित नन्द की रानी।।
हिंदी अर्थ: मैया यशोदा बार-बार कहती है कि इस ब्रज में कोई हमारा ऐसा हितेषी है, जो गोपाल को जाने से रोक ले। राजा कंस ने न जाने कौन से कार्य के लिए मेरे प्यारे बच्चों को मथुरा बुलाया है ? ये अक्रूर मेरे प्राणों को हरने वाला बनकर आया है। कंस भले ही मेरे सारे गोधन को ले ले, मुझे बंदी बना ले, लेकिन मेरे मोहन को मेरी आँखों से दूर न करे। यदि यह मथुरा चला गया तो मैं हँसते हुए किसे बुलाऊंगी। सूरदास जी कहते हैं कि श्रीकृष्ण के गुण गाते-गाते मैया यशोदा के होंठ सूख गए। मैं उस अत्यंत दुखी यशोदा मैया की दशा का वर्णन कहाँ तक करूँ।
Soordas ke Pad Class 10
सूरदास के पद संख्या 8
जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै।।
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै।।
कबहुँ पलक हरि मूँद लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै।।
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुर गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुर्लभ, सो नँद-भामिनि पावै।।
हिंदी अर्थ: मैया यशोदा कृष्ण को पालने में झूला रही हैं। वे उन्हें दुलार करती हैं और गीत गाने लगती हैं कि हे निंद्रा! मेरे पुत्र के पास आ जाओ। मेरा कान्हा तुम्हें बुला रहा है, तुम जल्दी से क्यों नहीं आ जाती। कृष्ण कभी अपनी पलकों को बंद कर देते हैं तो कभी अपने होंठों को हिलाने लगते हैं। मैया यशोदा कन्हैया को सोते हुए देखकर चुप हो जाती हैं और बाकी गोपियों को भी चुप हो जाने के लिए कहती हैं। तभी कन्हैया जाग जाते हैं और मैया फिर से मीठे स्वर में गीत गाने लग जाती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि देवताओं और श्रेष्ठ मुनियों को भी जो सुख दुर्लभ है, वह सुख नंदजी की पत्नी यशोदा को बड़ी ही आसानी से प्राप्त हो गया।
Soor ke Pad सूरदास के पद संख्या 9
मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी ?
किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहुँ है छोटी।।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्वैहै लाँबी-मोटी।
काढत-गुहत-न्हवावत जैहै नागिनी-सी भुइँ लोटी।।
काँचौ दूध पियावति पचि-पचि, देती न माखन-रोटी।
सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी।।
हिंदी अर्थ: इस पद में कृष्ण मैया से कहते हैं कि हे मैया मेरी चोटी कब बढ़ेगी? मुझे दूध पीते हुए कितने दिन हो गए हैं लेकिन यह अभी भी छोटी है। मैया तुम कहती थी कि मेरी छोटी दाऊ भैया की तरह बड़ी और मोती हो जाएगी। यह कंघी करते समय, गूंथते समय और नहाते समय जमीन पर लौटने लग जाएगी। तुम मुझे बार बार कच्चा दूध पिलाती हो, तुम मुझे-मक्खन रोटी नहीं देती हो। सूरदास जी कहते हैं कि कृष्ण-बलराम की यह अद्वितीय जोड़ी चिरंजीवी रहे।
सूरदास के पद संख्या 10
मैया मैं नहिं माखन खायौ।
ख्याल परैं ये सखा सबै मिली, मेरैं मुख लपटायौ।।
देखि तुही सीकें पर भाजन, ऊँचें धरि लटकायौ।
हौं जु कहत नान्हे कर अपनैं मैं कैसैं करि पायौ।।
मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्ही, दोना पीठि दुरायौ।
डारि साँटि, मुसुकाई जसौदा, स्यामहि कंठ लगायौ।।
बाल-बिनोद-मोद मन मोह्यौ, भक्ति-प्रताप दिखायौ।
सूरदास जसुमति कौ यह सुख, सिव बिरंचि नहिं पायौ।।
हिंदी अर्थ: माता यशोदा जब कन्हैया को डांटती है तो कन्हैया मैया के गले में अपनी बाहें डाल देते हैं और कहते हैं कि मैया मैंने माखन नहीं खाया है। यह सब तो इन सखाओं ने किया है। वे सब मेरे मुख पर पर माखन लगाकर तुमसे मुझे डांट खिलाना चाहते हैं। मैया माखन का बर्तन तो बहुत ऊंचाई पर रखा हुआ है। मैया मेरे नन्हें हाथ वहां तक कैसे पहुँच सकते हैं। इतना कहकर कन्हैया ने अपने मुख से माखन पोंछ लिया और माखन का बर्तन पीछे छिपा लिया। कन्हैया की बातें सुनकर मैया ने उन्हें अपने गले से लगा लिया। सूरदास जी कहते हैं कि श्रीहरि ने अपनी बाल लीला से मैया यशोदा को मोहित कर दिया। मैया यशोदा का यह सुख तो भगवान् शिव और ब्रह्मा के लिए भी दुर्लभ है।
सूरदास के पद संख्या 11
मैया, मैं तो चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं।।
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वैहौं पूत नंद बाबा कौ, तेरौ सुत न कहैहौं।।
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं।।
तेरी सौं मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं।
सूरदास ह्वैं कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं।।
हिंदी अर्थ: इस पद में कृष्ण मैया से चाँद को लेने की हठ करते हुए मैया से कह रहे हैं कि मैया मैं तो सिर्फ चाँद का ही खिलौनालूँगा। यदि आपने मुझे चाँद का खिलौना नही दिया तो मैं आपकी गोद में नहीं आऊंगा और जमीं पर ही लोट जाऊंगा। उसके बाद मैं दूध नहीं पियूँगा और अपने बाल भी नहीं बनवाऊंगा। मैं नन्द बाबा का पुत्र बन जाऊंगा, तेरा पुत्र नहीं कहलाऊंगा। माता यशोदा हँसते हुए कृष्ण से कहती है की हे कन्हैया मेरी बात सुनो, मैं तुम्हारे लिए नई दुल्हन ले आउंगी। मैया की बात सुनकर कृष्ण कहते हैं कि मैया मैं तो अभी ब्याह करने के लिए जाऊंगा। सूरदास जी कहते हैं कि हे प्रभु मैं भी आपके विवाह में कुटिल बाराती के रूप में मंगल गीत का गान करूँगा।
दोस्तों आपको ये Soordas ke Pad कैसे लगे, हमें नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके अवश्य बताएं।
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