TULSIDAS JI KE DOHE WITH MEANING IN HINDI
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तुलसीदास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित (Tulsidas Ji Ke Dohe with meaning in Hindi): रामकाव्य धारा के प्रवर्तक कवि गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म भारतवर्ष में उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में राजपुर नामक ग्राम में संवत 1554 में हुआ था।
यह दोहा उनके जन्मकाल के विषय में प्रचलित है –
पंद्रह सौ चौवन विषै, कालिंदी के तीर।
सावन शुक्ल सप्तमी, तुलसी धरेउ शरीर।।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। उनके द्वारा रचित ग्रन्थ आज समाज को नई दिशा, नई ऊर्जा प्रदान करते हैं।
इस पोस्ट में हम गोस्वामी जी द्वारा रचित कुछ दोहों (Best Tulsidas Ji ke Dohe) का ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।
उम्मीद है यह Tulsi ke Dohe आपकी जिंदगी में भी ज्ञान की गंगा को प्रवाहित करने का कार्य करेंगे।
TULSIDAS JI KE DOHE WITH HINDI MEANING
दोहा संख्या:- 1
नाम राम को कल्पतरु कलि कल्यान निवासु ।
जो सुमिरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास।।
भावार्थ: कलयुग में प्रभु राम का नाम उस कल्पवृक्ष के समान है जो मनवांछित फल प्रदान करता है। इसके सुमिरन मात्र से ही भांग के समान तुलसीदास भी तुलसी के भांति पवित्र हो गए।
तुलसीदास जी कहते हैं की जब तक उन्हें भगवान् राम के नाम की महिमा का ज्ञान नहीं था तब तक वे भांग के समान तुच्छ वस्तु थे। लेकिन राम नाम का जाप करने से वह तुलसी के समान पावन हो गए।
दोहा संख्या:- 2
नाम राम को अंक है सब साधन हैं सून।
अंक गएँ कछु हाथ नहीं अंक रहें दस सून।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की संसार में केवल राम नाम ही अंक है बाकी सब शून्य है। अंक के बिना कुछ भी नहीं रहता है लेकिन शून्य से पहले अंक लगने से वह दस गुना हो जाता है। इसी प्रकार राम नाम जपने से साधक का फल दस गुना हो जाता है
दोहा संख्या:- 3
राम भरोसो राम बल राम नाम बिस्वास।
सुमिरत शुभ मंगल कुसल माँगत तुलसीदास।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की सिर्फ राम पर ही मेरा विश्वास रहे, राम का ही बल रहे और जिसके स्मरण मात्र से शुभ मंगल और कुशल की प्राप्ति होती है। मेरा विश्वास उस राम नाम में ही रहे।
.दोहा संख्या:- 4
सत्य बचन मानस बिमल कपट रहित करतूति।
तुलसी रघुबर सेवकहि सकै न कलजुग धुति।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि जिनके वचनों में सत्यता होती है, जिनका मन पवित्र होता है और जिनके कर्म कपट रहित होते हैं। ऐसे प्रभु श्रीराम के भक्तों को कलियुग कभी भी धोखा नहीं दे सकता।
Tulsidas ke Dohe in Hindi with meaning
दोहा संख्या:- 5
जो सम्पति सिव रावनहिं दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस संपत्ति अर्थात भव्य लंका को भगवान् शिव ने रावण को दस शीस अर्पण करने के बाद दिया, उसी संपत्ति को प्रभु श्रीराम विभीषण को संकोच के साथ देते हैं।
Tulsidas ke Dohe in Hindi
दोहा संख्या:- 6
राम कथा मन्दाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु ।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम कथा मन्दाकिनी नदी है तथा निर्मल मन चित्रकूट है। स्नेह ही सुन्दर वन है जहाँ श्री सीताराम विहार करते हैं।
दोहा संख्या:- 7
सकल काज शुभ समउ भल सगुन सुमंगल जानु।
कीरति बिजय बिभूति भलि हियँ हनुमानहि आनु ।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि सभी कार्यों के लिए बहुत शुभ समय है। इस शगुन को कल्याणकारी समझो। अपने ह्रदय में श्री हनुमान जी का ध्यान करो, कीर्ति, विजय और श्रेष्ठ ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी।
दोहा संख्या:- 8
एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास ।
एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मुझे एक ही भरोसा है, एक ही बल है, एक ही आशा है और अपने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम पर अटूट विश्वास है।
यह बिलकुल वैसे ही है जैसे भगवान् श्री रघुनाथ जी स्वाति नक्षत्र की बूंद हैं और तुलसीदास पक्षी की तरह है।
दोहा संख्या:- 9
बचन बेष क्यों जानिए मन मलीन नर नारी।
सूपनखा मृग पूतना दसमुख प्रमुख बिचारि।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि वाणी और वेशभूषा से किसी मन के मैले स्त्री या पुरुष को जानना असंभव है। सुर्पणखां, मारीच, रावण और पूतना ने सुन्दर वेश धारण किये लेकिन इसके बाद भी उनकी नीयत मलिन ही रही।
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दोहा संख्या:- 10
रोष न रसना खोलिए बरु खोलीअ तरवारि।
सुनत मधुर परिनाम हित बोलीअ बचन बिचारि।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध की स्थिति में अपनी जुबान नहीं खोलनी चाहिए। इसके स्थान पर तलवार निकालना अधिक उचित है।
सोच विचारकर ऐसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए जो दूसरों का हित करने वाले एवं प्रसन्नता प्रदान करने वाले हों।

Tulsidas Ji ke Dohe with Hindi Meaning
दोहा संख्या:- 11
लाभ समय को पालिबो हानि समय की चूक।
सदा बिचारहिं चारुमति सुदिन कुदिन दिन दूक।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि किसी भी कार्य को उचित समय पर करने से लाभ होता है जबकि समय के निकल जाने के बाद सिर्फ नुक्सान ही होता है। क्योंकि अच्छा समय और बुरा समय दो दिन का होता है। इसलिए बुद्धिमान लोग इस बात पर हमेशा सोच-विचार करते हैं।
दोहा संख्या:- 12
का भाषा का संसकृत प्रेम चाहिए सौंच।
काम जु आवे कामरी का लै करिअ कुमाच।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु की आराधना करने के लिए किसी भाषा या संस्कृत की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए तो सिर्फ सच्चे प्रेम से ही काम चल जाता है।जैसे जब एक कम्बल से काम चल सकता है तो फिर महँगी दुशाला खरीदने की क्या आवश्यकता है?
दोहा संख्या:- 13
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहिं बिलोकत हानि।।
भावार्थ: जो लोग अपने अनहित का अनुमान लगाकर शरण में आये हुए का त्याग करते हैं। वो लोग पाँवर अर्थात क्षुद्र हैं, पाप से युक्त हैं और ऐसे लोगों को देखकर भी हानि होती है अर्थात पाप ही लगता है।
दोहा संख्या:- 14
तुलसी असमय के सखा धीरज धरम बिबेक।
साहित साहस सत्यब्रत राम भरोसो एक।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की विपत्ति के समय धैर्य, धर्म, विवेक, साहस, सत्यव्रत और प्रभु श्री राम का भरोसा ही मनुष्य के मित्र हैं। जिनके द्वारा वह बड़े से बड़े कष्ट को भी सहजतापूर्वक सह लेता है।
दोहा संख्या:- 15
बड़े पाप बाढ़ किये छोटे किए लजात।
तुलसी ता पर सुख चहत बिधि सों बहुत रिसात।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि जो बड़े-बड़े पाप तो आसानी से कर लेते हैं लेकिन छोटे-छोटे पापों को करने में शर्म महसूस करते हैं। वे लोग उस बुरे मनुष्य के समान हैं जो सुबह-सुबह घर से पूजा -पाठ करके निकलते हैं लेकिन रात-दिन छल-कपट में ही लगे रहते हैं।
दोहा संख्या:- 16
जासु भरोसे सोइऐ राखि गोद में सीस।
तुलसी तासु कुचाल तें रखवारो जगदीस।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि जिसकी गोद में विश्वास से सर रखकर सोएं, जब वही विश्वासघात कर दे तो हमारी रक्षा केवल भगवान् ही कर सकते हैं।
दोहा संख्या:- 17
राम कृपा तुलसी सुलभ गंग सुसंग सामान।
जो जल परै जो मन मिलै कीजै आपु समान।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि गंगा और सत्संग दोनों एक ही समान हैं। जिस प्रकार गंगा का जल जिस जल में भी मिलता है उसे अपने ही समान पवित्र कर देता है और संतों की संगती किसी भी दुर्जन मनुष्य के मन को भी अपने समान पवित्र कर देती है।
दोहा संख्या:- 19
हृदयँ कपट बर बेष धरी, बचन कहहिं गढ़ि छोलि।
अब के लोग मयूर ज्यों क्यों मिलिए मन खोली।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि आजकल मनुष्यों का व्यवहार कपटपूर्ण है। वे मयूर के समान सुन्दर वेश धारण करते हैं लेकिन उनके दिल में कपट ही रहता है। अर्थात वे बाहर से तो सभ्य व्यवहार करते हैं लेकिन अंदर ईर्ष्या और द्वेष से भरे हुए रहते हैं।
दोहा संख्या:- 19
सुख सागर सुख नींद सब सपने सब करतार।
माया मायानाथ की को जग जाननिहार।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि सिर्फ सुखसागर परमात्मा ही जीव के रूप में सुख की नींद सोते हुए स्वप्न में सभी कार्य कर रहे हैं। इस संसार में माया के स्वामी की इस माया को जानने वाला दूसरा कौन है?
दोहा संख्या:- 20
चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत।
राम नाम जप जापकहिं तुलसी अभिमत देत।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु श्रीराम-सीता और लक्ष्मण सहित हमेशा चित्रकूट में निवास करते हैं और जो भी भक्त राम नाम का जाप करता है वे उसे मनवांछित फल प्रदान करते हैं।
दोस्तों उम्मीद है आपको गोस्वामी तुलसीदास जी के यह दोहे (Tulsidas ke Dohe) पसंद आये होंगे। यदि आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे अन्य व्यक्तियों तक भी शेयर कीजिये जिससे ज्ञान की यह अनमोल गंगा हमेशा बहती रहे। आप अपनी अमूल्य राय हमें नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके भी बता सकते हैं।
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